रामायण किसने लिखी और कब लिखी रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। यह हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है और इसे संस्कृत भाषा में लिखा गया था। रामायण में भगवान राम के जीवन और उनके धर्म एवं कर्तव्य की कहानी का वर्णन किया गयाहिंदू धर्म के ग्रंथ रामायण के बारे में तो सब जानते ही हैं और ये भी जानते ही होंगे कि रामायण किसने लिखी थी। लेकिन आप में से शायद ही ये बात कोई जानता होगा कि भगवान राम को समर्पित एक रामायण स्वयं महाबली हनुमान जी ने लिखी थी, जिसे “हनुमद रामायण” के नाम से जाना जाता है। जी हां, ये बात सत्य है, लेकिन आपको इसके साथ ही ये जानकर भी हैरानी होगी कि खुद हनुमान जी ने इस रामयण को समुद्र में फेक दिया था। आखिर कौन सी वजह से उन्होंने ऐसा किया होगा। तो आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा के बारे में-
शास्त्रों में बताया गया है कि सबसे पहले रामायण हनुमान जी ने लिखी थी। कहते हैं कि ये रामायण एक पहाड़ पर लिखी थी अपने नाखुनो से ये कथा बाल्मीकि जी के रामायण लिखने से भी पहले लिखी गई है और इसे ही “हनुमद रामायण” का नाम मिला। कहते हैं कि जब राम जी ने लंका पर विजय प्राप्त की और वापस अयोध्या जाकर अपना राज पाठ संभाल रहे थे, इसी दौरान हनुमान जी ने रामायण लिखी।
बहुत समय गुजर जाने के बाद वाल्मीकि जी ने जो रामायण लिखी और उसे पुष्टि करवाने के लिए भगवान शिव के पास जाते हैं और वहां हनुमान जी द्वारा लिखी हनुमद रामायण के बार में पता चला तो उन्हें अपनी रामायण बहुत छोटी लगने लगी और वे बड़े उदास हो गए। उनकी उदासी के बारे में जब हनुमान जी को पता चला तो उन्होंने ने कहा कि वे तो खुद निस्वार्थ होकर अपने राम की भक्ति के मार्ग पर चलने वाले है और आज से आपकी रामायण ही जग में जानी जाएगी। इतना कहकर वो “हनुमद रामयण” को उठाकर सागर में डाल देते हैं।रामायण किसने लिखी और कब लिखी
हनुमान जी के इतने बड़े त्याग को देखकर वाल्मीकि जी ने कहा कि आपसे बड़ा कोई राम भक्त नहीं है और न ही आपसे बड़ा कोई दानी। आप तो महान से भी अत्यंत ऊपर हो आपके गुणगान के लिए मुझे कलयुग में एक जन्म और लेना पड़ेगा।
रामायण किसने लिखी और कब लिखी ऐसा माना जाता है कि रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी को ही वाल्मीकि जी का दूसरा जन्म माना जाता है। हनुमान जी की मदद से ही उन्होंने इस महाकाव्य के कार्य को पूरा किया और आज के समय में भी रामचरितमानस में वर्णित सुन्दरकाण्ड और हनुमान चालीसा लोगों की जुबान पर है।रामायण, एक प्रमुख हिंदू धार्मिक एपिक है जो भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है। रामायण का लेखक महर्षि वाल्मीकि माना जाता है। वाल्मीकि महर्षि एक महान संत और ऋषि थे जिन्होंने संस्कृत भाषा में रामायण का रचनात्मक कार्य किया। उन्होंने भगवान राम के जीवन को एक काव्य रूप में प्रस्तुत किया था।
रामायण भगवान राम के जीवन, उनकी पत्नी सीता, उनके भाई लक्ष्मण, हनुमान जैसे महत्वपूर्ण चरित्रों और उनकी लड़ाइयों को विस्तार से वर्णन करती है। रामायण महर्षि वाल्मीकि के अलावा अन्य कवियों द्वारा भी लिखी गई है, लेकिन महर्षि वाल्मीकि की रचना ही प्रसिद्धतम और प्रमुख मानी जाती है। उनकी रामायण को ‘आदि काव्य’ भी कहा जाता है।https://youtu.be/A0IlV8XBrbI?si=7tdvWquUumuPxxcM
रामायण के लिखे जाने का कोई सही ऐतिहासिक तथ्य नहीं मिलते हैं परन्तु कुछ विचार निम्न है;
• रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि राजा दशरथ के सहपाठी व राजा जनक के भी बालमित्र थे। ऐसा उन्होंने स्वयं सीता जी से राम द्वारा उनके वन में परित्याग के समय कहा था।अतःनिश्चित रूप से लव-कुश के जन्म के उपरांत त्रेताकाल(अप्रमाणिक) में ही लिखी गयी थी।महाकवि भवभूति अपनी रचना “उत्तररामचरित” में इसका समर्थन करते हैं। कुछ भारतीय कहते हैं कि रामायण ६०० ई•पू• से पहले लिखा गया। उसके पीछे युक्ति यह है कि महाभारत जो इसके पश्चात आया बौद्ध धर्म के बारे में मौन है यद्यपि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है। अतः रामायण गौतम बुद्ध के काल के पूर्व का होना चाहिये। भाषा-शैली से भी यह पाणिनि के समय से पहले का होना चाहिये।
“रामायण का पहला और अन्तिम कांड संभवत: बाद में जोड़ा गया था। अध्याय दो से सात तक ज्यादातर इस बात पर बल दिया जाता है कि राम विष्णु के अवतार थे। कुछ लोगों के अनुसार इस महाकाव्य में यूनानी और कई अन्य सन्दर्भों से पता चलता है कि यह पुस्तक दूसरी सदी ईसा पूर्व से पहले की नहीं हो सकती पर यह धारणा विवादास्पद है। ६०० ई•पू• से पहले का समय इसलिये भी ठीक है कि बौद्ध जातक रामायण के पात्रों का वर्णन करते हैं जबकि रामायण में जातक के चरित्रों का वर्णन नहीं है। इसलिए बुद्ध को अनीश्वरवादी भी कहा जाता है। … ब्राह्मण बुद्ध को ‘मुंडक’ व ‘वसल’ (नीच) कहकर बेइज्जत किया करते थे। रामायण के अयोध्या काण्ड में बुद्ध को चोर के बराबर रखा गया है। वाल्मीकि कहते हैं, ‘जैसे चोर दंडनीय होता है, उसी प्रकार (वेद विरोधी) बुद्ध दंडनीय हैं।
• रामायण किसने लिखी और कब लिखी बाल्मीकि रामायण के अयोद्ध्या कांड में जब भरत अपनी तीनों माताओं के साथ राम के वनवास के दौरान चित्रकूट से उन्हें वापस लेने गए थे तो उनके साथ वशिष्ठ मुनि और जबाली नामक एक महान ऋषि भी थे। जबाली ने राम के मन में राजसी एसो- आराम की लालसा भड़काकर की इच्छा से अनीश्वरवादी दर्शन की व्याख्या करने लगे। तो राम कठोर शब्दों में कहा ; “मेरे पिता ने आपको परामर्श दाता के रूप में नियुक्त करके भूल की है क्योंकि आपके विचार चार्वाको और बौद्धों के समान ही कटु निरिश्वर वादी हैं। आपके जैसे लोग इतने अधम पापी होते हैं कि वेदों में ऐसे निरिश्वर वादी का मुख तक देखने की मनाही है।”
• अत: यह सिद्ध होता है कि रामायण बुद्ध के जन्म ५६६ ई•पू• और ६०० ईपू के बीच लिखा गया था।
विष्णु पुराण के अनुसार, विष्णु हिंदू धर्म में परमात्मा के एक अवतार माना जाता है, जो सृष्टि का पालन करता है और धर्म स्थापित करने के लिए अवतार लेता है। मोहम्मद, राम और कृष्ण तीनों के बारे में यहां नीचे दी गई जानकारी द्वारा विशेषज्ञ नहीं हूँ, लेकिन इनके बारे में कुछ महत्वपूर्ण तत्व हैं
रामायण किसने लिखी और कब लिखी

- मोहम्मद: मोहम्मद प्रोफ़ेट मुहम्मद (आदि मानव) इस्लाम धर्म के संस्थापक थे। उन्हें इस्लामी विश्वास के अनुसार आल्लाह के पूर्ण रूप का अवतार माना जाता है।
- राम: राम हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण अवतार माने जाते हैं। उन्हें विष्णु के सातवें अवतार में जाना जाता है और रामायण में उनके जीवन का वर्णन है।
- कृष्ण: कृष्ण हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। उनके जन्म और जीवन का वर्णन महाभारत में मिलता है और उनका अधिकारी जीवन भगवद गीता में विस्तारपूर्वक बताया गया है।
इन तीनों व्यक्तियों के बारे में अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग मान्यताएं हैं और वे अलग-अलग धर्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके परंपरागत कथाएं, उपास्यता और महत्व पर विभिन्न विश्वास होते हैं।
धर्म संबंधी समस्याओं को समझने और इसके विशेषज्ञ से परामर्श प्राप्त करने के लिए, आपको धार्मिक परंपराओं के अनुसार आचार्य, पंडित या धार्मिक गुरु से संपर्क करना चाहिए।रावण के पिता के पिता अर्थात बाबा का नाम क्या था?महाभारत काल के सभी योद्धा वर्तमान युग में होते तो स्थिति अत्यंत विभिन्न होती। महाभारत काल और वर्तमान युग के बीच विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, और तकनीकी परिवर्तन हुए हैं, जो योद्धाओं और समाज की स्थिति को अलग बनाते हैं। नीचे उन विभिन्न पहलुओं के बारे में कुछ बातें हैं जिनके कारण स्थिति विभिन्न हो सकती युद्ध और समर्थन: महाभारत काल में युद्धों का सामर्थ्य और योद्धाओं के समर्थन के लिए उपलब्ध संसाधन अलग थे। वर्तमान युग में, युद्ध साधनाएं, रणनीति, और युद्ध सैन्य तकनीक में बड़ी परिवर्तन हुआ है, जिससे योद्धा वर्तमान युग में भी एक विशिष्ट स्थान पर हो सकते हैं।
धर्म और संस्कृति: महाभारत काल में धर्म, आचार-विचार, और संस्कृति योद्धाओं के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। वर्तमान युग में धर्म, संस्कृति, और मूल्यों में भी अनेक परिवर्तन हुए हैं, जिससे योद्धा वर्तमान युग में भी अपने धर्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ अग्रसर हो सकते हैं।
तकनीकी प्रगति: वर्तमान युग में तकनीकी प्रगति ने युद्ध प्रक्रिया और सैन्य योजना में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है। योद्धा वर्तमान युग में तकनीकी युक्तियों और युद्ध उपकरणों का उपयोग कर सकते हैं।
समाज और राजनीति: वर्तमान युग में समाज और राजनीति के संरचना में भी बड़े परिवर्तन हुए हैं। योद्धा वर्तमान युग में भी समाज और राजनीति के बदलते परिवर्तनों का सामना करने की क्षमता रखते हैं।
शिक्षा और विकास: वर्तमान युग में शिक्षा और विकास के क्षेत्र में बड़ी परिवर्तन हुआ है। योद्धा वर्तमान युग में भी शिक्षा और विकास के लिए उच्च स्तर की योग्यता और ज्ञान रखते हैं।
यह सभी प्रासंगिक तथ्य ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि वर्तमान युग में महाभारत काल के सभी योद्धा भी वैष्णव, धर्मिक, और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ रहकर एक योग्य और गरिमामय जीवन जी सकते थेहै:
रुद्राक्षमाला में दो मनकों के बीच गांठ क्यों दिया जाता है और ये गांठ ढांई फंदे का ही क्यों होता है…?
रुद्राक्षमाला में दो मुक्तियों (मनकों) के बीच एक गांठ देने का परंपरागत तरीका है और इसे ‘गांठ’ या ‘बिन्दी’ कहा जाता है। यह गांठ रुद्राक्ष माला के बाएं और दाएं हिस्से के मध्य में होती है। गांठ का इस्तेमाल धार्मिक और आध्यात्मिक उपयोग के लिए किया जाता है।

हनुमान जयंती या हनुमान जयंती वसंत पंचमी के दिन मनाई जाती है. यह त्योहार हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष पंचमी को आता है, जो जनवरी और फरवरी के बीच होता है.
भक्त लोग हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें समर्पित भजन, कथा, और सत्संग आयोजित करते हैं। हनुमान जयंती को भारत में, विशेष रूप से उत्तर भारत, बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, और मंदिरों में भक्तों के आगमन का उत्सव मनाया जाता है. भक्तों द्वारा हनुमान चालीसा का पाठ भी विशेष भक्तिभाव से किया जाता है.
जयंती पर भक्तों को हनुमान जी के गुणों, उपासनीयता, और भक्ति का अध्ययन करने का अवसर मिलता है, जिससे उनका आचरण भगवान हनुमान के प्रति और उसकी सेवा के प्रति और उसकी सेवा के प्रति दृढ़ होता है
क्या सीता और राम जीका एक ही बेटा है?
नहीं, सीता और राम जी का एक ही बेटा नहीं है। राम और सीता का बेटा कुश था। रामचंद्र और सीता माता के पुत्र कुश किस्से के अनुसार बड़े महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में बड़े हुए थे। उन्हें लव-कुश भी कहा जाता है। लव-कुश अयोध्या में जन्मे थे और उनकी माता की गिरफ्त में आने के बाद राम ने उन्हें अपने आश्रम में ले जाकर उनका पालन-पोषण किया।

लव-कुश अयोध्या के राजा राम के पुत्र थे और बाद में उन्हें उनके पिता राम के साम्राज्य का अध्यक्ष बनाया गया। लव-कुश के जनकर्षण (युद्ध में मृत्यु) के बाद, राम ने उन्हें अपने साथी स्वर्ग में ले जाने का निर्णय किया और उन्हें स्वर्ग वापस ले आए। लव-कुश का युद्ध के प्रसंग में एक प्रसिद्ध काव्य है, जिसे “रामायण” का एक अंश कहा जा सकत
भगवान परशुराम जी ने क्यों विवाह नहीं की?
भगवान परशुराम जी ने क्यों विवाह नहीं की भगवान परशुराम ने ब्रह्मचारी बनने का व्रत अपनाया था, इसलिए उनका विवाह नहीं हुआ था। वे अविनाशी ब्रह्मचारी थे, यानी वे जीवन भर ब्रह्मचर्य धारण करेंगे और किसी भी स्त्री के साथ विवाह नहीं करे
संबंधित भगवान कृष्ण ने राधा से विवाह क्यों नहीं किया था?
भारतवर्ष में शायद ही कोई ऐसा हो जो कृष्ण और राधा नाम से परिचित न हो। ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा गर्गसंहिता से श्रीराधा और श्रीकृष्ण जी के बारे में हमें विस्तार से जानकारी प्राप्त होती है,इसके अलावा श्रीकृष्ण चरित्र ,भागवत में विस्तार से तथा थोडा़ कम मात्रा में श्रीविष्णु पुराण से भी प्राप्त होता है।
अब हम मूल बात पर आते हैं कि कृष्ण ने राधा के साथ शादी की थी या नहीं।
हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि राधा और कृष्ण हैं कौन? यदि वह परमेश्वर(दोनों) हैं,तो इस धरातल पर क्यों आऐ ? इन सब बातों को जानने के लिऐ हम गर्गसंहिता तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण का अध्ययन करते हैं।श्रीकृष्ण ही मूल परमेश्वर हैं और उनकी शक्ति राधा जी हैं,वह दोनों स्वरुपतः एक हैं,शास्त्रों में कहा गया है कि उनमें न तो कोई बडा़ है और न कोई छोटा ,वह एक दूसरे से अभिन्न हैं जिस प्रकार से आग में ऊष्णता,जल में शीतलता और पृथ्वी में गंध व्याप्त है।
राधाकृष्ण परमधाम(गोलोक ) के रहवासी हैं। राधाकृष्ण की ही संतान महाविराट पुरुष है जो कारणवारि में शयन करते हैं जिनके आधीन अनन्त कोटि संसार हैं।श्रीकृष्ण ही विष्णु ,शिव आदि परादेवता हैं अर्थात यह सब श्री भगवान के ही स्वरुप हैं और श्रीराधा ही महालक्ष्मी,शिवा आदि शक्तियां हैं
एक बार गोलोक में श्रीकृष्ण अपनी शक्ति विरजा देवी के समीप थे।राधा को यह ठीक नहीं लगा।राधा जी सखियों के साथ वहां जाने लगी।तब श्रीदामा ने उन्हें रोका।इस पर श्रीराधा ने उसे
असुर होने का श्राप दे दिया।इसके बदले सेवक श्रीदामा ने भी राधा को मानव योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया और कहा कि गोकुल में ही श्रीहरि के अंश रायाण नामक गोप होगें,उनके साथ आपका छाया रुप रहेगा।अतः मूढ़ लोग आपको रायाण वैश्य की पत्नी समझेंगे,श्रीहरि के साथ आपका कुछ काल तक विछोह रहेगा।
इससे दोनों को ही क्षोभ हुआ।तब अतंर्यामी भगवान ने
श्रीदामा को संतावना देकर कहा कि तुम धरती पर शंखचूर्ण नामक असुर होओगे तथा श्रीशंकर के हाथों मृत्यु को प्राप्त होओगे।
अब राधा जी को बडे़ प्रेम से गले लगाकर कहा-प्रिये चिंता मत करो ,वाराहकल्प में मै भी आपके साथ पृथ्वी पर जाउंगा ,मेरे रहते तुम्हें क्या चिंता।
उधर विरजा देवी नदी हो गयी और उनके श्रीकृष्ण द्वारा सात पुत्र हुऐ जो धरती पर सात समुद्र हो गये
इसी कारण से श्रीहरि और श्रीराधा जी धरती पर अवतरित हुऐ।यह परमेश्वर की लीलामात्र है।
श्रीराधा जी का विवाह साक्षात ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण
के साथ भाण्डीर वन में करवाया था।सारे देवी देवताओं ने पुष्प वर्षा की थी

भगवान श्रीकृष्ण प्रेम के प्रतिक माने जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पहली पत्नी रुक्मिणी जो की भगवान श्रीकृष्ण को बहुत प्यारी थी, और आखरी तक श्रीकृष्ण का साथ निभाया। वह पटरानी थी इसलिए जो भी व्दारका आता था उनका अतिथि सत्कार करना, भोजन की व्यवस्था करने का काम देवी रुक्मिणी पर था। लेकिन इतना होते हुए भी श्रीकृष्ण के साथ रुक्मिणी को जोडा नहीं जाता। राधेकृष्ण ही कहा जाता, या राधे-राधे कहा जाता। अगर सचमुच श्रीकृष्ण का विवाह राधा से हो जाता तो शायद श्रीकृष्ण के साथ राधा को नहीं जोड़ा जाता। वास्तव में राधा थी ही नहीं, यह एक काल्पनिक पात्र हैं, जो १२ वी सदी में लिखा गया। वैसे तो कोई भी मुलग्रंथ में राधा जिक्र नहीं किया गया। और राधा का मतलब होता है,मोक्ष को प्राप्त करने का माध्यम। इसलिए पहले राधा को जानो फिर आपको श्रीकृष्ण का मिलन होगा, श्रीकृष्ण में समा जायेंगे। धन्यवाद जवाब अच्छा लगे तो
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